Saurabh Patel

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लेखनी प्रतियोगिता -05-Jul-2022 नक़ाब


मुझे भी आज आंखों से बात करने का हुनर आता
अगर तू किसी शाम नक़ाब में मेरे सामने से गुज़र जाता

अगर रहती शहर की सारी लड़कियां नक़ाब में
तो इश्क़ में आंखों का दाम चेहरे से भी उपर जाता

अगर मिलता मौका कभी तुझे बिना नक़ाब देखने का
तो मेरी तबियत में बिना दवाइयों के भी सुधार आता

एक तो नक़ाब उपर से वो तेरी काजल से घिरी आंखे
कौन बेवकूफ डूब मरने के लिए दरिया समंदर जाता

 सोचो "सौरभ"अगर न होती दुनियां में नक़ाब की रस्म 
तो उस काले नक़ाब में छुपा नूर सरेआम बिखर जाता।

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18 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Jul-2022 07:36 PM

बहुत खूबसूरत

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Saurabh Patel

06-Jul-2022 09:41 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Shrishti pandey

06-Jul-2022 01:28 PM

Nice

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Saurabh Patel

06-Jul-2022 02:08 PM

Thank you

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Abhinav ji

06-Jul-2022 07:36 AM

Very nice

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Saurabh Patel

06-Jul-2022 11:36 AM

Thank you

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